अलंकार : परिभाषा, प्रकार और उदाहरण – Alankar in Hindi

अलंकार – Alankar in Hindi Grammar

अलंकरोति इति अलंकार: – यह अलंकार की व्युत्पत्ति है। जैसे स्वर्णाभूषण नारी शरीर का सौंदर्य बढ़ाते हैं वैसे ही काव्य के शरीरभूत शब्द एवं अर्थ को उपमा आदि अलंकार सुशोभित करते हैं। संस्कृत के सभी आचार्यों ने शब्द और अर्थ को काव्य का शरीर माना है।

अलंकार रहित काव्य की कल्पना, उष्णता रहित अगिन की कल्पना के समान ही उपहास योग्य है। इस भावाभिव्यक्ति को चंद्रालोक में जयदेव ने लिखा –

अंगीकरोति यः काव्यं शब्दार्थानवलंकृति।

असौ न मन्यते कस्मात अनुष्णमनलंकृति।।

अलंकार शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है ‘आभूषण‘ या गहने, लेकिन शब्द निर्माण के आधार पर अलंकार शब्द ‘अलम्’ और ‘कार’ दो शब्दों के योग से बना है। ‘अलम्’ का अर्थ है ‘शोभा’ तथा ‘कार’ का अर्थ है ‘करने वाला’।

अलंकार का लक्षण – 

(क.) कथन के चमत्कारपूर्ण प्रकारों को अलंकार कहते हैं।

(ख.) शब्द और अर्थ का वैचित्र्य अलंकार है।

(ग.) काव्य की शोभा बढ़ाने वाला धर्मों को अलंकार कहते हैं।

(घ.) काव्य की शोभा की वृद्धि करने वाला शब्दार्थ के अस्थिर धर्मों को अलंकार कहते हैं।

अलंकार की उपयोगिता –

अलंकारों की सहायता से काव्य की रोचकता बढ़ जाती है, अलंकारों की सहायता से वर्ण विषय स्पष्ट एवं सुबोध हो जाता है। अलंकारों का आवश्यकतानुसार उचित और स्वभाविक प्रयोग ही काव्य की शोभा में वृद्धि करता है। अनावश्यक अलंकारों का आधिक्य शोभा बढ़ाने की जगह काव्य के सौन्दर्य को कम कर देता है।

अलंकार के भेद या प्रकार – Alankar Ke Bhed Ya Prakar in Hindi

शब्द और अर्थ को प्रायः सभी आचार्यों ने काव्य का शरीर माना। काव्य में तीन प्रकार के अलंकार माने गये –

1 . शब्दालंकार – काव्य में जब चमत्कार प्रधानतः शब्द में होता है, अर्थात जहाँ शब्दों के प्रयोग से ही सौंदर्य में वृद्धि होती है। काव्य में प्रयुक्त शब्द को बदल कर उसका पर्याय रख देने से अर्थ न बदलते हुए भी उसका चमत्कार नष्ट हो जाता है, वहाँ शब्दालंकार होता है।

शब्दालंकार के भेद – 1. अनुप्रास, 2. विप्सा, 3. पुनरुक्ति प्रकाश, 4. यमक, 5. श्लेष, 6. वक्रोक्ति, 7. पुरुक्तवदाभास।

2 . अर्थालंकार – काव्य में जहाँ अलंकार सौंदर्य अर्थ में निहित हो, वहाँ अर्थालंकार प्रयुक्त होता है। इन अलंकारों से काव्य में प्रयुक्त किसी शब्द के स्थान पर उसका समानार्थी शब्द रखने पर भी चमत्कार बना रहता है।

1 . सादृश्यमूलक (उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, दृष्टांत, उदाहरण, भ्रांतिमान, व्यतिरेक, संदेह, अन्योक्ति आदि)

2 . विरोधमुल्क (विरोधाभास, असंगति, विभावना, विशेषाक्ति आदि)

3 . उभयालंकार – 1 . वस्तुमूलक, 2 . शृखंलामूलक

नोट – आचार्य मम्मट ने 61 अर्थालंकार तथा 6 शब्दालंकार माने। चंद्रालोक में 104 अलंकारों का वर्णन है जिसमें 100 अर्थालंकार व 4 शब्दालंकार हैं।

अनुप्रास अलंकार 

काव्य में जब एक वर्ण से प्रारंभ होने वाले शब्दों की रसानुकूल दो या दो से अधिक बार आवृति होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार प्रयुक्त होता है।

जैसे –

रत जंतु लनिधि जाने।

गवान क्तों की यंकर भूरि भीति गाइये।

अनुप्रास के भेद – अनुप्रास के मुख्यतः चार भेद होते हैं – (क.) छेंकानुप्रास, (ख.) वृत्यनुप्रास, (ग.) श्रुत्यनुप्रास, (घ.) अंत्यानुप्रास।

श्लेष अलंकार

शब्द एक ही बार आए और उस शब्द के दो या अधिक अर्थ निकलें तब श्लेष अलंकार होता है।

उदाहरण –

नर की अरु नल नीर की, गति गति एकै करि जोय।

जेतौ नीचे ह्वै चले, तेतो ऊँचो होय।।

  • इस दोहे में ‘नीचो’ और ‘ऊँचो’ इन दो पदों में श्लेष अलंकार है। ‘नीचो’ का पद का अर्थ है नर के पक्ष में ‘नम्र होकर’ तथा नल के पक्ष में निम्नगामी होना है।
  • ‘ऊँचो’ का अर्थ नर के पक्ष में उत्तम और जल के पक्ष में ऊँचा चढ़ना है यदि शिलिस्ट पदों के स्थान पर इनका उपयोग किया जाए तो अर्थ में कोई हानि नहीं होगी।

अन्य उदाहरण –

‘पानी गये न ऊबरे, मोती मानुष चून’

यहाँ ‘पानी’ शब्द का मोती के संदर्भ में अर्थ चमक है, मनुष्य के संदर्भ में ‘इज्जत‘ तथा ‘चून’ (आटा) के संदर्भ में पानी।

  • श्लेष अलंकार दो प्रकार के होते हैं – शब्द श्लेष और अर्थ श्लेष।

यमक अलंकार

जहाँ कोई शब्द एक से अधिक बार अलग-अलग अर्थ में प्रयुक्त हो वहां यमक अलंकार होता है।

उदाहरण –

कनक-कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।

या खाए बोराय जग वा पाए बोराय।।

यहाँ ‘कनक‘ शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है जिसमें पहले में कनक ‘सोना‘ के अर्थ में तथा दूसरे में ‘धतूरा‘ के अर्थ में।

उपमा अलंकार 

उपमा शब्द का अर्थ है – उप (समीप) + मा (मापना/तोलना) समीप रखना अर्थात जहां गुण, धर्म अथवा क्रिया के आधार पर उपमेय (जिसकी उपमा दी जाए) की तुलना उपमान (जिसमें उपमा दी जाती है) से की जाती है। वह उपमा अलंकार होता है।

उदाहरण – मुख कमल सा खिल गया।

यहां ‘मुख’ उपमेय है। कमल उपमान है। ‘खिल गया’ साधारण धर्म है। ‘सा’ वाचक शब्द है।

उपमा के चार अंग होते हैं –

(क.) उपमेय/प्रस्तुत – जिसकी उपमा दी जाये

(ख.) उपमान/अप्रस्तुत – जिससे उपमा दी जाये .

(ग.) समान गुण (धर्म) – उपमेय और उपमान में पाया जाने वाला उभयनिष्ठ गुण

(घ.) वाचक (सादृश्य) – उपमेय और उपमान की समता बताने वाला शब्द

उपमेय, उपमान साधारण धर्म और वाचक शब्द – ये चार बातें सादृशमूलक अर्थालंकारों में पाई जाती है।

उपमा के भेद – 1. पुर्नोपमा, 2. लुप्तोपमा, 3. मालोपमा

रूपक अलंकार

इस अलंकार में उपमेय उपमान का रूप धारण कर लेता है। इसमें दो पदार्थ एक नहीं हो जाते लेकिन दोनों का अस्तित्व नहीं मिटता है। साधारण भाषा में जब एक वस्तु को दूसरी वस्तु (आरोप) का रूप दिया जाता है, तो वहाँ रूपक अलंकार होता है।

उदाहरण –

उदित उदय-गिरि मंच पर, रघुबर बाल पतंग।

बिकसे सन्त सरोज वन, हरषे लोचन भृंग।।

उक्त प्रस्तुत उदाहरण की पंक्तियों में ‘मंच’ को उदयाचल, ‘श्री रामचंद्र’ को बाल सूर्य, ‘संतो’ को कमल और ‘लोचनों’ को भ्रमर बताया गया है।

रूपक के तीन भेद होते हैं – 1. सांगरूपक (सावयव रूपक), 2. निरंग रूपक (निरवयव रूपक), 3. परंपरित रूपक

उत्प्रेक्षा अलंकार

इस अलंकार में उपमेय में उपमान की संभावना होती है। सामान्य अर्थ में एक वस्तु को दूसरी वस्तु से मान लिया जाता है।

उदाहरण –

कहती हुई यों उतरा के नेत्र में जल से भर गये।

हिम कणों से पूर्ण मानो हो गये पंकज नये।।

यहाँ आंसुओं से भरे हुए उतरा के नेत्रों में ओस कण युक्त कमल की संभावना की गई है। संभावना करने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है। वह उत्प्रेक्षा के वाचक शब्द कहलाते हैं।

जैसे – मानो, जानो, मनहु, जनहु आदि।

उत्प्रेक्षा के तीन भेद होते हैं –

1. वस्तूत्प्रेक्षा (एक वस्तु में दूसरी वस्तु की संभावना)

2. हेतूत्प्रेक्षा (अहेतु में हेतु की संभावना)

3. फलोत्प्रेक्षा (अफल में फल की संभावना)

विभावना अलंकार 

जहां कारण के अभाव में भी कार्य हो रहा हो, वहाँ विभावना अलंकार होता है।

उदाहरण –

बिनु पग चलै, सुनै बिनु काना।

कर बिनु करम, करै विधि नाना।।

तुलसी की इन पंक्तियों में बिना पैर के चलने, बिना कान के सुनने और हाथ के बिना विभिन्न कार्य करने की बात कही गई है।

असंगति अलंकार

इस अलंकार में कारण और कार्य में संगति का अभाव होता है। इसमें कारण कहीं और कार्य कहीं अन्यत्र घटित होता है।

उदाहरण – दृग उरझत, टूटत कुटुम।

बिहारी के इस दोहांश में उलझती तो आंखें हैं लेकिन कुटुम्ब से संबंध टूटता है। यहाँ आखिर उलझने पर कुटुम्ब से संबंध टूटने से समाप्त नहीं होती।

संदेह अलंकार

उपमेय में उपमान का संदेह होता है। जब समानता के कारण एक वस्तु में अनेक वस्तुओं के होने की संभावना दिखाई पड़े और निश्चय न हो तब वहाँ संदेह अलंकार होता है।

उदाहरण –

तारे आसमान के हैं आये मेहमान बनि,

केशों में निशा ने मुकतावली सजाई है।।

यहाँ दीप मलिका में तारावली और मुक्तावली का संदेह हो रहा है।

भ्रांतिमान अलंकार

जब सादृश्य के कारण उपमेय में उपमान की भ्रांति हो जाय अर्थात जब भूलवश उपमेय को उपमान को समझ लिया जाए, तो भ्रांतिमान अलंकार होता है।

तात्पर्य यह है कि इस अलंकार में सादृश्य के कारण एक वस्तु को दूसरी वस्तु मान लिया जाता है।

उदाहरण – ओस-बिन्दु चुग रही हंसिनी मोती उनको जान।

इस पंक्ति में हंसिनी को ओस बिन्दुओं में मोतियों की भ्रांति हो गयी है।

संदेह और भ्रांतिमान अलंकार में अंतर – भ्रांतिमान अलंकार में उपमेय एवं उपमान के समानता के आभास को सत्य मान लिया जाता है। लेकिन संदेह अलंकार में संदेह बना रहता है।

विरोधाभास अलंकार

जब वाक्य में वास्तविक विरोध न होने पर भी विरोध का आभास प्रतीत हो वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है।

या अनुरागी चित्त की गति समुझै नहिं कोय।

ज्यों-ज्यों बुरै स्याम रंग त्यौं-त्यौं उज्जवल होय।।

इन काव्य पंक्तियों में स्याम रंग में डूबने पर भी उज्जवल होने पर विरोध दिखाई देता है जबकि वास्तव में यह सही नहीं है।

मानवीकरण अलंकार

जहाँ निर्जीव एवं अन्य प्राणी/जड़ (अमानव) या प्रकृति पर मानवीय चेस्टाओं (मानवजनित गुणों या क्रियाओं का) आरोप किया जाता है, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।

उदाहरण –

जगी वनस्पतियाँ अलसाई,

मुख धोती शीतल जल से।

उक्त पंक्तियों में वनस्पतियों का शीतल जल से मुँह धोना होना मानवीय चेस्टा है। वनस्पति वास्तविकता में मानव (मनुष्य) के समान अपना मुख जल से नहीं धो सकती।


हिंदी व्याकरण – Hindi Grammar


Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top