अपठित गद्यांश – Apathit Gadyansh in Hindi Grammar
अपठित गद्यांश गद्य साहित्य का ऐसा अंश है जिसे पहले पढ़ा नहीं गया हो, जो निर्धारित पाठ्य-पुस्तकों में संकलित नहीं हो।
उस अपठित गद्यांश की भाषा कठिन नहीं होती, अपितु प्रेरणात्मक सामाजिक परम्पराओं से युक्त होती है। जिसे आसानी से समझा जा सकता है।
अपठित गद्यांश के गुण –
1 . इसमें अभिव्यक्ति स्पष्ट रूप से होती है।
2 . इसमें विषय-वस्तु की सम्पूर्ण जानकारी होती है।
3 . इसमें बुद्धि की एकाग्रता दिखाई देती है।
4 . इसमें तथ्यों का वास्तविक विवेचन होता है।
5 . इसमें व्यावहारिक भाषा का शुद्ध प्रयोग होता है।
(1 .) अपठित गद्यांश (Apathit Gadyansh) के उदाहरण
— निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
प्रकृति पर्यालोचन के सिवाय कवि को मानव-स्वभाव की आलोचना का भी अभ्यास कराना चाहिए। मनुष्य अपने जीवन में अनेक प्रकार के सुख-दुःख आदि का अनुभव करता है। उसकी दशा कभी एक-सी नहीं रहती है। अनेक प्रकार की विचार-तरंगें उसके मन में उठा करती हैं। इन विचारों की जाँच, ज्ञान और अनुभव करना, सबका काम नहीं है। केवल कवि ही इनका अनुभव कराने में समर्थ होता है। जिसे कभी पुत्र शोक नहीं हुआ उसे कुल शोक का यथार्थ ज्ञान होना संभव नहीं है; पर यदि वह कवि है तो पुत्र शोकाकुल पिता या माता की आत्मा में प्रवेश सा करके उसका अनुभव कर सकता है। उस अनुभव का वह इस तरह वर्णन करता है कि सुनने वाला उस दुःख से अभिभूत हो जाता है, उसे ऐसा मालूम होने लगता है कि स्वयं उसी पर वह दुःख पड़ रहा है। जिस कवि को मनोविकारों और प्राकृतिक बातों का यथेष्ट ज्ञान नहीं होता, वह कदापि अच्छा कवि नहीं हो सकता है।
✅ उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक है –
(1) मानव स्वभाव की आलोचना
(2) यथार्थवादी साहित्य
(3) संवेदनशील कवि
(4) दुःख की अनुभूति
Ans. – (3) संवेदनशील कवि
कवि अपने साहित्य में किन प्रमुख तथ्यों का चित्रण करता है –
(1) प्रकृति पर्यालोचन
(2) मानव स्वभाव की आलोचना
(3) (1) और (2) दोनों
(4) मनोविकारों की अभिव्यंजना
Ans. – (3) (1) और (2) दोनों
लेखक ने किसे अच्छा कवि माना है –
(1) जो पात्र की आत्मा में प्रवेश कर उसका अनुभव कर सके
(2) जो पात्रों की अनुभूति कला के माध्यम से कर सके
(3) जो अच्छा साहित्य सृजन कर सके
(4) जो स्वयं को पात्रों के स्थान पर खड़ा कर सके
Ans. – (1) जो पात्र की आत्मा में प्रवेश कर उसका अनुभव कर सके
लेखक ने किसे श्रेष्ठ कवि नहीं माना है –
(1) जो यथार्थ का नग्न चित्रण करता है।
(2) जिसे मनोविकारों का ज्ञान नहीं है।
(3) जिसे प्राकृतिक चित्रण का यथेष्ट ज्ञान नहीं है।
(4) (2) और (3) दोनों
Ans. – (4) (2) और (3) दोनों
केवल कवि ही इनका अनुभव करा सकता है –
(1) सुख-दुःख की अनुभूति
(2) यथार्थ का चित्रण
(3) विचार-तरंगों की विविधता
(4) मानव की आलोचना
Ans. – (3) विचार-तरंगों की विविधता
यथेष्ट शब्द में सन्धि है –
(1) यण सन्धि
(2) गुण सन्धि
(3) वृद्धि सन्धि
(4) विसर्ग सन्धि
Ans. – (2) गुण सन्धि
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(2 .) अपठित गद्यांश (Apathit Gadyansh) के उदाहरण
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
समय वह सम्पत्ति है जो प्रत्येक मनुष्य को ईश्वर की ओर से मिली है। जो लोग इस धन को संचित रीति से बरतते हैं, वे शारीरिक सुख और आत्मिक आनन्द प्राप्त करते हैं। इसी समय सम्पत्ति के सदुपयोग से एक जंगली मनुष्य सभ्य और देवता स्वरूप बन जाता है। इसी के द्वारा मूर्ख विद्वान्, निर्धन धनवान् और अज्ञ अनुभवी बन सकता है। संतोष, हर्ष या सुख मनुष्य को प्राप्त नहीं होता है जब तक वह उचित, रीति से समय का सदुपयोग नहीं करता है। समय नि:संदेह एक रत्न राशि है। जो कोई उसे अपरिमित और अगणित रूप से अंधाधुंध व्यय करता है, वह दिन-दिन अकिंचन, रिक्तहस्त और दरिद्र होता जाता है। वह आजीवन खिन्न और भाग्य को कोसता रहता है। मृत्यु भी उसे इस जंजाल और दुःख से छुड़ा नहीं सकती है। प्रत्युत् उसके लिए मृत्यु का आगमन मानव अपराधी के लिए गिरफ्तारी का वारंट है। सच तो यह है कि समय नष्ट करना एक प्रकार की आत्महत्या है।
अन्तर केवल इतना ही है कि आत्महत्या सदा के लिए जीवन जंजाल छुड़ा देती है और समय के दुरुपयोग से एक निर्दिष्ट काल तक जीवन मृत्यु की दशा बनी रहती है। ये ही मिनट, घंटे और दिन प्रमाद और अकर्मण्यता में बीतते जाते हैं। यदि मनुष्य विचार करे, गणना करे तो उसकी संख्या महीनों तथा वर्षों तक पहुँचती है। यदि उससे कहा जाता है कि तेरी आयु से दस-पाँच वर्ष घटा दिये जायें तो नि:संदेह उसके हृदय पर भारी आघात पहुँचता है, परन्तु वह स्वयं निश्चेष्ट बैठे अपने अमूल्य जीवन को नष्ट कर रहा है और क्षय एवं विनाश पर कुछ भी शोक नहीं करता है। यद्यपि समय की निरुपयोगिता आयु को घटाती है, परन्तु यदि हानि होती तो अधिक चिंता की बात न थी। कारण संसार में सबको दीर्घायु प्राप्त नहीं होती है, परन्तु सबसे बड़ी हानि जो समय की दुरुपयोगिता एवं अकर्मण्यता से होती है, वह यह कि पुरुषार्थहीन और निरीह पुरुष के विचार अपवित्र और दूषित हो जाते हैं।
वास्तव में बात तो यह है कि मनुष्य कुछ न कुछ करने के लिए ही बनाया गया है। जब चित्त और मन लाभदायक कर्म में विलीन नहीं होते, तब उनका झुकाव बुराई और पाप की ओर अवश्य हो जाता है। इस हेतु यदि मनुष्य सचमुच ही मनुष्य बनना चाहता है तो सब कर्मों से बढ़कर श्रेष्ठ कार्य उसके लिए यह कि वह एक पल भी व्यर्थ न खोए। प्रत्येक कार्य के लिए पृथक् समय और प्रत्येक समय के लिए पृथक् कार्य निश्चित करे।
✅ उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक है –
(1) समय ही जीवन
(2) समय की महत्ता
(3) समय ही भगवान
(4) समय का दुरुपयोग
Ans. – (2) समय की महत्ता
समय के सदुपयोग से क्या लाभ है –
(1) संतोष की प्राप्ति
(2) सुख की अनुभूति
(3) देव स्वरूप स्थिति
(4) उपर्युक्त सभी
Ans. – (4) उपर्युक्त सभी
समय के दुरुपयोग से सबसे बड़ी हानि है –
(1) धन की हानि
(2) रूप की हानि
(3) पौरुष की हानि
(4) स्वास्थ्य की हानि
Ans. – (3) पौरुष की हानि
समय का सदुपयोग कैसे कर सकते हैं –
(1) प्रात:काल टहलने से
(2) प्रतिदिन पढ़ाई करने से
(3) घड़ी की व्यवस्था करके
(4) प्रत्येक कार्य के लिए समय निर्धारित करके
Ans. – (4) प्रत्येक कार्य के लिए समय निर्धारित करके
समय रूपी सम्पत्ति की कद्र करने से सम्भव है –
(1) मूर्ख व्यक्ति विद्वान बन जाता है।
(2) निर्धन व्यक्ति धनवान हो जाता है।
(3) अज्ञ व्यक्ति विज्ञ हो जाता है।
(4) उपर्युक्त सभी
Ans. – (4) उपर्युक्त सभी
समय को नष्ट करना लेखक ने किसके समान बताया है –
(1) जीवन को कम करना
(2) आत्महत्या करना
(3) दूसरों को परेशान करना
(4) ईश्वर की अवहेलना करना
Ans. – (2) आत्महत्या करना
व्यक्ति बुराई और पाप की ओर कब झुकता है –
(1) मन के अनुसार चलने से
(2) समय को नष्ट न करने से
(3) लाभदायक कर्म में तल्लीन न होने से
(4) उपर्युक्त सभी
Ans. – (3) लाभदायक कर्म में तल्लीन न होने से
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(3 .) अपठित गद्यांश (Apathit Gadyansh) के उदाहरण
निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
हर्ष की बात है कि इस देश के विश्वविद्यालय हिन्दी को शिक्षा का माध्यम स्वीकार करते जा रहे हैं। इसके लिए पाठ्य पुस्तकों की आवश्यकता भी जरूरी होगी। इनके लिए बाजार भी मिलेगा और इनसे रुपया भी कमाया जा सकता है। गंभीर साहित्य भी इस बहाने कुछ न कुछ अवश्य लिखा जायेगा। इस कार्य में आप हाथ पर हाथ धरे बैठ नहीं सकते और ‘क’ नहीं तो ‘ख’ इस काम को कर ही लेगा, जिसके लिए बाजार में माँग होगी, उसका उत्पादन होकर ही रहेगा। उसके लिए आपको संगठन और सुनिश्चित योजना बनाने की चिंता नहीं करनी होगी। हिन्दी को माध्यम स्वीकार कर लेने से ही हमें संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। कारण कि पोथियों की संख्या बढ़ाना या ज्ञान की दुकान चलाना साहित्य का लक्ष्य नहीं है। मेरे मन में हिन्दी भाषा और साहित्य का एक विशिष्ट रूप है। हमारे देश में जो स्थान कभी संस्कृत का था और जो स्थान अंग्रेजी ने ले लिया, उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण और उत्तरदायित्वपूर्ण पद पर हिन्दी को बैठाना है। मैंने यह बात पहले भी कही है और फिर दोहरा रहा हूँ। हिन्दी को संसार के समूचे ज्ञान-विज्ञान का वाहन बनाना है। उसका कर्त्तव्य बहुत विशाल है। उसे अपने को महान् उत्तरदायित्त्व के योग्य सिद्ध करना है। मनुष्य को अज्ञान, मोह, कुसंस्कार और परमुखापेक्षिता से बचाना ही साहित्य का लक्ष्य है। इससे छोटे लक्ष्य की बात मुझे अच्छी नहीं लगती है। इस महान् उद्देश्य की हिन्दी पूर्ति कर सके तभी वह उस महान् उत्तरदायित्व के योग्य सिद्ध होगी जो इतिहास विधाता की ओर से उसे मिला है। हिन्दी भारतवर्ष के हृदय देश में स्थित करोड़ों नर-नारियों के हृदय और मस्तिष्क को खुराक देने वाली भाषा है।
✅ उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक है –
(1) हिन्दी की गरिमा
(2) राजभाषा के रूप में हिन्दी
(3) राष्ट्रभाषा की समस्या
(4) हिन्दी भाषी क्षेत्र
Ans. – (1) हिन्दी की गरिमा
लेखक की दृष्टि में हिन्दी का उपयुक्त स्थान होना चाहिए –
(1) जो स्थान कभी संस्कृत का था।
(2) जो हमसे अंग्रेजी ने छीन लिया।
(3) उससे भी अधिक महत्वपूर्ण एवं उत्तरदायित्वपूर्ण।
(4) उपर्युक्त सभी
Ans. – (4) उपर्युक्त सभी
साहित्य को परम लक्ष्य है –
(1) मनुष्य को अज्ञान से बचाना
(2) मनुष्य को कुसंस्कारों से बचाना
(3) मनुष्य का परमुखापेक्षिता से मुक्त कराना
(4) उपर्युक्त सभी
Ans. – (4) उपर्युक्त सभी
साहित्यकारों का प्रथम लक्ष्य होना चाहिए –
(1) अधिकाधिक साहित्य की संख्या बढ़ाना एवं भाषा की प्रतिष्ठा बढ़ाना
(2) बालापयोगी साहित्य का सृजन करना।
(3) कामोत्तेजक साहित्य का सृजन करना।
(4) समाज को दिभ्र्मित करने का कार्य करना।
Ans. – (1) अधिकाधिक साहित्य की संख्या बढ़ाना एवं भाषा की प्रतिष्ठा बढ़ाना
लेखक हिन्दी को किस रूप में प्रतिष्ठित करना चाहता है –
(1) अंग्रेजी से श्रेष्ठ बनाना चाहता है।
(2) संस्कृत के समकक्ष बनाना चाहता है।
(3) ज्ञान-विज्ञान का वाहक बनाना चाहता है।
(4) राष्ट्रभाषा के रूप में देखना चाहता है।
Ans. – (3) ज्ञान-विज्ञान का वाहक बनाना चाहता है।
परमुखापेक्षिता से तात्पर्य है –
(1) श्रेष्ठ प्राणी
(2) दूसरे की तरफ ताँकना
(3) बाद के कवियों की ओर देखना
(4) इनमें से कोई नहीं
Ans. – (2) दूसरे की तरफ ताँकना
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(4 .) अपठित गद्यांश (Apathit Gadyansh) के उदाहरण
दिए गए गद्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
धरातल से युद्ध की विभीषिकाओं को सदा-सदा के लिए समाप्त करने हेतु गाँधीजी ने विश्व को अहिंसा रूपी अस्त्र प्रदान किया। गाँधीजी कहा करते थे कि प्रेम और अहिंसा के द्वारा विश्व के कठोर से कठोर हृदय को भी कोमल बनाया जा सकता है। उन्होंने इन सिद्धांतों का परीक्षण किया और वे नितान्त सफल सिद्ध हुए। हिंसा से हिंसा बढ़ती है, घृणा घृणा को जन्म देती है और प्रेम से प्रेम की अभिवृद्धि होती है। अतः यह निश्चित है कि बिना प्रेम और अहिंसा के विश्व में शांति स्थापित नहीं हो सकती। शांति के अभाव में मानव जाति का विकास सम्भव नहीं। प्रत्येक राष्ट्र का स्वर्णिम युग वही कहा जाता है जब वहाँ पूर्ण शांति और सुख हो । उत्तमोत्तम रचनात्मक कार्य हो रहे हों। भौतिक दृष्टि से व्यवहार और कृषि की उन्नति शांत भाव से ही संभव है। अत: यदि हम विश्व का कल्याण चाहते हैं तो हमें युद्ध का बहिष्कार करना ही होगा, अहिंसा और प्रेम की भावना से विश्व में शांति स्थापित करनी होगी, तभी विश्व में एक सुखमय एवं शांतिमय राज्य की स्थापना सम्भव होगी।
✅ उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक है –
(1) विश्व बंधुत्व
(2) अहिंसा
(3) सत्याग्रह
(4) प्रेम और अहिंसा
Ans. – (4) प्रेम और अहिंसा
विश्व कल्याण के लिए आवश्यक है –
(1) युद्ध का बहिष्कार
(2) प्रेम की स्थापना
(3) (1) और (2) दोनों
(4) इनमें से कोई नहीं
Ans. – (3) (1) और (2) दोनों
गाँधी जी ने युद्ध की विभीषिका को रोकने के लिए क्या उपाय बताया –
(1) अहिंसा रूपी अस्त्र
(2) सत्याग्रह रूपी अस्त्र
(3) प्रेम रूपी हथकड़ी
(4) बंधुत्व रूपी परिवार
Ans. – (1) अहिंसा रूपी अस्त्र
किसी भी राष्ट्र का स्वर्णिम युग कब सम्भव है –
(1) घृणा को जन्म देकर
(2) प्रेम को बढ़ावा न देकर
(3) पूर्ण शांति स्थापित कर
(4) नए सिद्धान्त बनाकर
Ans. – (3) पूर्ण शांति स्थापित कर
विश्व शांति किस प्रकार सम्भव है –
(1) योग की शिक्षा द्वारा
(2) अमन का पाठ पढ़ाकर
(3) भौतिक उन्नति द्वारा
(4) प्रेम और अहिंसा के द्वारा
Ans. – (4) प्रेम और अहिंसा के द्वारा
शांति के अभाव में सम्भव नहीं है –
(1) सुखमय और आदर्श राज्य की स्थापना
(2) मानव जाति का विकास
(3) कृषि की उन्नति
(4) उपर्युक्त सभी
Ans. – (4) उपर्युक्त सभी
घृणा से घृणा बढ़ती है और प्रेम से प्रेम की……. होती है –
(1) जुगुप्सा
(2) अभिवृद्धि
(3) अतिवृष्टि
(4) वीभत्स
Ans. – (2) अभिवृद्धि
हिंदी व्याकरण – Hindi Grammar
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