वो प्राण ही हैं, जो शरीर में से निकल जाने पर शरीर मृत हो जाता है।
इसी लिए हम हर जीव को प्राणी कहते हैं,
जैसे की धनी : जिसके पास धन है वो,
बली : जिसके पास बल है वो,
प्राणी : जिसके पास प्राण हैं वो।
ऑक्सीजन को प्राणवायु कहते हैं,
और जीवन को नियंत्रण करने वाले व्यायाम को प्राणायाम कहते हैं।
बिना प्राण का शरीर बस भौतिक द्रव्यों का ढ़ेर ही बनके रह जाता है।
तो,
क्या हैं ये प्राण?
जीव की प्राथमिक जीवन शक्ति (Life Force) को प्राण कहते है।
प्राण से ही भोजन का पाचन, रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य, रज, ओज, आदि धातुओं का निर्माण, व्यर्थ पदार्थो का शरीर से निकास, उठना, बैठना, चलना, बोलना, चिंतन, मनन, स्मरण, ध्यान आदि समस्त स्थूल एवं सूक्ष्म क्रियाएँ होती हैं।
वैसे ही जैसे किसी कंप्यूटर के Hardware और Software दोनों प्रकार के सभी कार्य मूलभूत रूप से विद्युत से ही होते हैं। वैसे ही शरीर के भी सभी कार्य मूलभूत रूप से प्राणशक्ति से ही होते हैं।
और जैसे ही बिजली के अभाव से कंप्यूटर धीमा पड़ जाता है वैसे ही प्राण की न्यूनता या निर्बलता से शरीर के सारे अंग, प्रत्यंग, इन्द्रियाँ, मन, हृदय और बुद्धि आदि शिथिल व रुग्ण (diseased) हो जाते हैं।
जिससे हमारा शरीर आलसी (Lazy, Procrastinator),
मन ध्यान हीन (Uncontrolled),
हृदय मृतभावनायुक्त (Depressed, Anxious, Suicidal),
और बुद्धि विकारयुक्त (Cheater, Unrighteous, Dull) बन जाता है।
वैसे ही जब हम में भरपूर प्राण होते हैं तब..
शरीर बलवान, क्रियाशील (Strong, Active),
मन संयमी, साहसी (Controlled, Brave),
हृदय धैर्यवान, उत्साही, प्रसन्न (Patient, Enthusiastic, Lively)
और बुद्धि सकारात्मक (Honest, Righteous, Wise) बन जाती है।
तदुपरान्त,
प्राण शक्ति के बढ़ने से आत्मबल (Courage) बढ़ता है।
आत्मबल के कारण मनोबल (Confidence) बढ़ता है।
मनोबल बढ़ने से संकल्प शक्ति और इच्छाशक्ति (Will Power) बढ़ती है।
संकल्प शक्ति से अनुशासन (Discipline) बढ़ता है। अनुशासन से लक्ष्यों की प्राप्ति होती है।
और निरंतर लक्ष्यों की प्राप्ति से जीवन के हर क्षेत्र में सामर्थ्य बढ़ता है।
प्राण की मात्रा :
प्रत्येक प्राणी, मनुष्य और स्थान में अलग अलग मात्रा में प्राण होते हैं। जितने अधिक प्राण हों उतना वो प्राणवान (जीवंत) होता है और कम होते होते वह अंत में प्राणहीन (मृत, निर्जीव, जड़) हो जाता है।
जितना आप प्राणवान के समीप रहते हो उतना आप में प्राण बढ़ता है और जितना अधिक आप प्राणहीन के समीप रहते हो उतना ही आपका प्राण क्षीण होता है।
प्राकृतिक रूप से प्रत्येक प्राणी कुछ स्तर के प्राणों के साथ जन्म लेता है। फिर समय के साथ वो..
1. कहाँ रहता है?
2. किसके साथ रहता है?
3. कैसे रहता है?
4. क्या खाता है?
5. और क्या करता है?
आदि कर्मों के अनुसार अपने प्राणों की वृद्धि या नाश करता है।
प्राणों के अभाव वाले मनुष्य न ही लौकिक लक्ष्यों की
प्राप्ति कर सकते है न ही आध्यात्मिक लक्ष्यों की।
ऐसे लोग जीते जागते होने के पश्चात् भी मृतक के समान लगते हैं और इनके समीप रहने मात्र से आपकी ऊर्जा क्षीण होने लगती है।
उसी के सामने प्राणवान लोग कोई न कोई लक्ष्यों की प्राप्ति में लगे रहते है, और इनके समीप जाने मात्र से हमें उत्साह, प्रेरणा, सकारात्मकता और आनंद की अनुभूति होती है तथा हमारे प्राणों की भी वृद्धि होती है।
सबसे अधिक प्राण किसमें होता हैं?
मनुष्यों में : संत पुरुषों, पवित्र सती स्त्रियों, निःस्वार्थ भक्तों, ब्रह्मचारियों और यहाँ तक कि सात्विक जीवन जीने वाले नास्तिक लोगों में भी अधिक प्राण होते है। इसी लिए जब ऐसे लोगों के समीप कुछ पल भी बिताते हैं, भले ही उनसे प्रत्यक्ष कोई बात न हो, भले ही वो आपको भीड़ में न देखें, फिर भी उनके कुछ पलों के सानिध्य मात्र से शरीर में प्राण भरता है और नकारात्मकता, मानसिक तनाव, डिप्रेशन और आत्महत्या के विचार (Suicidal Tendencies) तक निकल जाते हैं।
पशुओं में : विशेषतः गाय, घोड़ें, हाथी आदि शाकाहारी पशुओं में होता है। वैसे ज़्यादातर प्राणियों में आज के अधिकतर मनुष्यों से अधिक प्राण होते हैं, परंतु गायों में सबसे अधिक प्राण होते हैं। इसीलिए पाश्चात्य देशों में अभी ऐसी खास Cow Hugging Therapy भी दी जाती है जिसमें आप प्रति घंटा पैसा देकर गायों के साथ समय बिताकर अपना मानसिक तनाव (Anxiety) और अवसाद (Depression) आदि दूर कर सकते हो।
स्थानों में : मंदिर, नदियाँ, तीर्थ धाम और खेत, खलिहान, उद्यान, जंगल आदि हरियाली जगहें तथा प्राकृतिक हवा, सूर्यप्रकाश और वनस्पति से भरे घर में
होता है। इसी लिए मंदिर और पवित्र धाम में जाने से नास्तिक के हृदय को भी शांति का अनुभव होता है (यदि वह द्वेषी नहीं है तो) और गाँव में रहने वाले और खेतों में काम करने वाले लोगों में Depression और Anxiety की समस्याएँ नहीं देखने को मिलती। वे दुःखी अवश्य हो सकते हैं परंतु Depressed नहीं।
भोज्य पदार्थों में : सूर्यप्रकाश, वर्षाजल, भूगर्भजल (Spring Water), नदी-समुद्र-झरने का जल, हरि सब्ज़ियों, ताज़ा फ़लों और खेतों में सुख से चरती गायों के दूध-घी आदि उत्पादों में होता है। इसमें भी सब्ज़ियों और फलों को जितना ज़्यादा काटा, उबाला, भुना, पकाया या तला जाता है उतना ही उनमें से प्राण की मात्रा कम होती जाती है। इसी लिए बाजारू जंक फूड और ज्यूस आदि में प्राण कम होता हैं। तथा मांस व अंडा आदि मृत होने से संपूर्ण रूप से प्राणहीन होते हैं।
कौन सी चीज़ें प्राणहीन होती हैं?
किनमें सबसे कम प्राण होते हैं?
मनुष्यों में : आलस्य, मांसाहार, भोग, व्यसन, पाप, वाणी व आचरण में अमर्यादा, निरंकुश गुस्सा, स्वार्थ, लोभ, मोह, काम, कपट व दोगला स्वभाव यह गुण प्राण को क्षीण करने वाले है। अतः साधनाहीन, तपहीन, भोगी, पापी, अमर्यादित, आलसी और तामसिक जीवन जीने वाले लोगों में सबसे कम प्राण होता हैं। इसीलिए इनके समीप मात्र आने से नकारात्मकता और मानसिक ऊर्जाहीनता (Mental Energy Drain) अनुभव होती है। अतः ऐसे लोगों का संग करने के पश्चात आप स्वयं को विराम देकर मानसिक ऊर्जा की वृद्धि के कार्य करना पसंद करते हो।
पशुओं में : अधिकतर पशु में आजकल के मनुष्यों से अधिक प्राण होते हैं, परंतु गंदगी में रहने वाले (सूअर, भैंस, गधे, आदि), मांसाहारी (बिल्ली, कुत्ते, सियार, शेर आदि), केंचुली निकालने वाले (साँप, छिपकली आदि) सभी में कम प्राण शक्ति होती है। और जितना पशु छोटे शरीर का होता है उतनी ही उसमें प्राण शक्ति भी कम होती है। बड़े प्राणियों में छोटे प्राणियों के सापेक्ष अधिक प्राण होते हैं।
स्थानों में : निर्जीवता से भरी जगहें। जहाँ बहुत कम वनस्पति व पशु पक्षी रहते है जैसे कि शमशान, युद्धस्थल और बड़े बड़े कॉर्पोरेट शहर। निर्जीव प्रकाश (Tubelight, Bulbs, Tv, Computer, Mobile Screens), निर्जीव हवा (Fans, Coolers, AC) और निर्जीव वनस्पति (Fake Decorative Plants) से भरी जगहें।
जैसे कि शहरी फ़्लैट्स, कॉपोरेट ऑफिसें, बड़े बड़े मॉल, सिनेमाघर, थियेटर, क्लब, बार, कसीनो आदि भोग की जगहें सबसे प्राणहीन होती हैं। इसीलिए कॉपोरेट ऑफ़िसों में काम करने वालों में तथा अधिक भोगवृत्तिमें डूबे रहने वालों में तनाव और अवसाद का प्रमाण सबसे अधिक होता है।
भोज्य पदार्थों में : नल और बोतलों के पानी, मांस, मछली, अंडे आदि मृत भोजन, बासी भोजन, अत्यधिक बारीक कटी हुई सब्ज़ीयाँ, अधिक Process किया गया भोजन अर्थात् समस्त प्रकार का बाजारू जंक फूड और बिना हवा उजास के अंधेरे में पकाया गया भोजन भी प्राणहीन होता है।
महान आयुर्वेद आचार्य वाग्भट तो यहाँ तक कहते हैं कि जिस भोजन को बनाते समय सूर्यप्रकाश, शुद्ध हवा और शुद्ध अग्नि ने न छुआ हो ऐसा भोजन विष के समान होता है। इसीलिए अधिकतर रेस्टोरेंट और ढाबों में बनाया गया भोजन त्यागने योग्य होता है।
और यह भी है कि आजकल अधिकतर घरों में रसोई घर के अंदर बिना सूर्यप्रकाश, बिना शुद्ध हवा और बिना शुद्ध अग्नि को छुए ही बनता है, जबकि पहले के समय में रसोई हमेशा घर के बाहर सूर्यप्रकाश में, शुद्ध हवा और शुद्ध अग्नि की उपस्थिति में चूल्हे पर बनाई जाती थी। अतः गरीब होने के पश्चात भी किसान आदि मज़दूर अधिक स्वस्थ और दीर्घायु होते थे।
अभी यदि आपको ध्यान में आया !
तो आप समझ गए होंगे कि क्यों पिछले कुछ दशकों में पूरी दुनिया में मानसिक अवसाद (Depression) और तनाव (Anxiety) के किस्से इतनी अधिक मात्रा में बढ़ते जा रहे हैं।
क्योंकि हमेशा से पूरी दुनिया की जीवन शैली खेत, खलिहान और प्रकृति के अधीन रहने से प्राणवान रहती थी। परंतु पिछले कुछ दशकों के इंडस्ट्रियल रेवोलुशन के पश्चात बनी मॉडर्न जीवन शैली सबके लिए श्राप सिद्ध हो रही है।
हमारी आज की यह मॉडर्न जीवनशैली हम सभी में से धीरे धीरे प्राण हरण करके हमें प्राणहीन बना रही है।
क्योंकि न हम प्राणवान जगहों पर रहते हैं,
न ही प्राणवान लोगों से मिलते हैं,
न ही प्राणवान जीवों के साथ रहते हैं,
और न ही प्राणवान भोजन पाते हैं।
और फिर जब Depression Anxiety होती है तो भी उसको मिटाने या उससे विचार हटाने के लिए हम क्लब, कैसीनो, सिनेमाघर जैसी और अधिक प्राणहीन जगहों पर जाते हैं, और अधिक प्राण का हरण करते हैं।
या फिर यह सोचकर कि डॉक्टर इसका इलाज करेगा इस विश्वास से फिरसे प्राणहीन अस्पतालों में जाते हैं, प्राणहीन दवाइयाँ लेते हैं और आशा करते हैं कि इससे यह Depression Anxiety चली जाएगी।
परंतु, यह संभव नहीं है।
मॉडर्न मेडिकल विज्ञान में प्राण की कोई संकल्पना (Concept) है ही नहीं। जिसके कारण यहाँ सिर्फ़ बाहरी कारणों का इलाज करने के प्रयास वर्षों से किए जा रहे हैं, परंतु इसे जड़ से मिटाने का कोई उपाय मिल नहीं रहा है।
वो इसलिए क्यूँकि,
मानसिक अवसाद और तनाव मूलभूत रूप से कोई बीमारी नहीं है कि इसका इलाज किया जा सके। अधिक से अधिक दवाइयों से बाह्य लक्षण को कम किया जा सकता है, वो भी कुछ समय के लिए, परंतु इसका इलाज मात्र यही है कि आपके शरीर में प्राणों की पुनः वृद्धि की जाए।
इसीलिए कोई भी व्यक्ति यदि मानसिक अवसाद (Depression) और तनाव (Anxiety) से ग्रसित है तो उपर्युक्त प्राणवान और प्राणहीन सूची के अनुसार प्राणहीन का त्याग करें और प्राणवान को जीवन में अपनाए, अपने आप ही प्रथम दिन से अपकी स्थिति में सुधार शुरू हो जाएगा।
परंतु, अब प्रश्न यह आता है कि इतनी महत्त्वपूर्ण प्राणशक्ति आख़िर शरीर में रहती कहाँ है?
उसका संचय कहाँ होता है? और किस रूप में होता है?
यह प्राण शक्ति हमारे संपूर्ण शरीर के कोने कोने में विद्यमान होती है। उसका संचय सूक्ष्म रूप से शरीर के प्रत्येक कोषों में होता है। और वो जिस रूप में विद्यमान रहती है, वह रूप है… – वीर्य