स्वर वर्ण
परिभाषा – जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता है और जिनके सहयोग से ही व्यंजनों का उच्चारण होता है, वे स्वर कहलाते हैं।
अथवा,
जब कोई वर्ण, किसी अन्य वर्ण की सहायता के बिना भी सरलता से बोला जा सकता है या किसी वर्ण का उच्चारण करने पर हवा फेफड़ो से उठकर बिना किसी टकराव (स्पर्श) के मुख से बाहर निकल जाती है, उसे स्वर कहा जाता है। अर्थात मुख से स्वतः उच्चरित ध्वनियों को स्वर कहा जाता है।
✅ हिंदी में अन्य 10 स्वरों के समान ऋ स्वतंत्र रूप से उच्चारण में भीतर आने वाली हवा बाधा डालती है। इसीलिए आजकल इसका उच्चारण रि होने लगा है किंतु दूसरे स्वरों के समान ऋ तत्सम शब्दों में स्वतंत्र रूप से तथा मात्रा के रूप में व्यंजनों के बाद भी प्रयुक्त हो सकता है। अतः इसकी गणना स्वरों में की जाती है।
जैसे:- कृपण, कृपा, कृश, मृत्यु, तृण आदि।
स्वर वर्ण के भेद (Swar Ke Bhed in Hindi Grammar) –
1 . उच्चारण के अवधि (मात्रा काल) के आधार पर –
(क.) ह्रस्व स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता हैं, उन्हें ह्रस्व स्वर अथवा मूल स्वर कहते हैं।
ह्रस्व स्वर = अ, इ, उ, ऋ
(ख.) दीर्घ स्वर – ‘आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ’ ये सात दीर्घ स्वर कहलाते हैं। इनको बोलने में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है। ये प्रायः दो स्वरों से मिलकर बने होते हैं। अतः इन्हे संयुक्त स्वर भी कहा जाता है।
अ + अ = आ
इ + इ = ई
उ + उ = ऊ
अ + इ = ए
अ + ए = ऐ
अ + उ = ओ
अ + ओ = औ , परन्तु उपयुक्त में से ‘ए’ और ‘ओ’ को ही शुद्ध संयुक्त स्वर माना जाता है।
2 . उच्चारण के आधार पर –
(क.) अनुनासिक स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में वायु मुख के साथ-साथ नाक से भी बाहर निकलती हैं, उन्हें अनुनासिक स्वर कहा जाता हैं। अनुनासिक स्वरों को चंद्र बिंदु लगाकर लिखा जाता हैं।
जैसे – अँ, आँ, इँ, ईँ, उँ, ऊँ (अँधेरा, आँख आदि)
(ख.) निरनुनासिक स्वर – जिन स्वरों के उच्चारण में वायु केवल मुख से बाहर निकलती हैं, उन्हें निरनुनासिक स्वर कहा जाता हैं।
जैसे – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। अर्थात वर्णमाला में प्रयुक्त सभी ग्यारह स्वर निरनुनासिक होते हैं।
हिंदी व्याकरण – Hindi Grammar
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